मोदी का लाल किला भाषण: RSS का सम्मान या राजनीतिक रणनीति?

भारत की राजनीति में हर प्रधानमंत्री का लाल किले से दिया गया भाषण एक गहरा संदेश होता है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने सबका ध्यान खींचा। पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने लाल किले से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और स्वयंसेवकों के योगदान का ज़िक्र किया। सवाल यह है — क्या यह केवल सम्मान था या एक राजनीतिक रणनीति?

ऐतिहासिक संदर्भ और RSS–भाजपा संबंध

अब तक लाल किले के भाषणों में RSS का नाम सीधे तौर पर नहीं आया था। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी ऐसा नहीं हुआ। हाल के वर्षों में भाजपा और संघ के बीच खटास की खबरें सामने आईं — जैसे राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति पर मतभेद, या मोहन भागवत के बयान जिनका अलग-अलग राजनीतिक मतलब निकाला गया।

मोदी जी का सीधा संदेश स्वयंसेवकों को

मोदी जी ने अपने संबोधन में सीधे स्वयंसेवकों के त्याग और समर्पण की सराहना की। यह एक आंतरिक संदेश था — कि भाजपा और संघ एक परिवार हैं, और प्रधानमंत्री स्वयं एक स्वयंसेवक होकर संघ की विचारधारा का सम्मान करते हैं। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा और संघ व भाजपा के बीच दूरी की चर्चाएँ कमज़ोर पड़ीं।

राजनीतिक रणनीति: विपक्ष को डाइवर्ट करना

यहां पर बड़ा सवाल यही है कि क्या मोदी जी सिर्फ़ RSS को धन्यवाद कह रहे थे या इसके पीछे रणनीतिक सोच भी है। कई विश्लेषकों का मानना है — और हमारा भी यही ओपिनियन है — कि मोदी जी ने विपक्ष का ध्यान RSS vs BJP की बहस में फंसा दिया है। इससे विपक्ष महंगाई, बेरोज़गारी, गठबंधन की चुनौतियाँ और 2024 के चुनाव जैसे असली मुद्दों पर फोकस खो सकता है।
इसे राजनीतिक भाषा में Narrative Shifting कहा जाता है — यानी असली बहस से ध्यान हटाकर नई बहस खड़ी करना।

2024 और उसके बाद की राजनीति

आने वाले चुनावों में संघ की सक्रियता भाजपा के लिए निर्णायक होगी। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने स्वयंसेवकों से सीधा संवाद किया। उन्होंने संघ के सबसे पुराने मुद्दे — अवैध घुसपैठ और जनसंख्या असंतुलन — पर भी बात की और हाई-पावर्ड डेमोग्राफी मिशन की घोषणा की। इससे यह संदेश गया कि मोदी सरकार न सिर्फ़ संघ की विचारधारा सुन रही है बल्कि उसे नीतिगत रूप भी दे रही है।

मोदी जी का भाषण केवल एक औपचारिकता नहीं था। यह तीन स्तरों पर काम करता है:

  1. स्वयंसेवकों का मनोबल बढ़ाना,
  2. भाजपा और RSS में दूरी की अफवाहों को रोकना,
  3. और विपक्ष को नई बहस में उलझाकर चुनावी नैरेटिव पर पकड़ बनाए रखना।

इसलिए यह भाषण सिर्फ़ तारीफ़ नहीं, बल्कि एक सोची-समझी राजनीतिक चाल भी माना जा सकता है।

Posted in

Leave a comment